एक गाँव में दो लड़के रहते थे | एक का नाम ज्ञानवान और दूसरे का नाम बुद्धिमान था लेकिन दोनों पढने-लिखने में बहुत कमजोर थे | दोनों के माता-पिता उनको लेकर बहुत परेशान थे
बहुत पुरानी बात है एक गाँव में दो लड़के रहते थे | एक का नाम ज्ञानवान और दूसरे का नाम बुद्धिमान था लेकिन दोनों पढने-लिखने में बहुत कमजोर थे | दोनों के माता-पिता उनको लेकर बहुत परेशान थे , उन्होंने ज्ञानवान और बुद्धिमान को अच्छी शिक्षा देने के लिए वनारस भेज दिया | ज्ञानवान और बुद्धिमान ने वनारस में कुछ वर्ष रहकर अध्ययन किया अब दोनों ही अच्छी शिक्षा ग्रहण कर विद्वान हो चुके थे |
विद्वान होने के सांथ ही उनमें इस बात का घमण्ड भी आ गया था कि वे बहुत विद्वान हैं | हर जगह दोनों ही अपने को अधिक श्रेष्ठ और दूसरे को नीचा दिखलाने कर प्रयत्न करते थे | दोनों को कई वार उनके शिक्षकों ने इस वारे में समझाया किन्तु दोनों अपने को ही श्रेष्ठ समझते थे |
शिक्षा खत्म होने के बाद दोनों को वनारस से अपने गाँव वापस लौटना था | रास्ता बहुत लंबा था चलते-चलते उन्हें रात हो गई और उन्होंने एक गाँव में अपना डेरा डाला | गाँव के जमींदार को पता चला कि उनके गाँव में वनारस के विद्वान आये हुए हैं | जमीदार साहब ने दोनों विद्वानों को रात्री विश्राम और भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित किया | ज्ञानवान और बुद्धिमान दोनों जमीदार के घर आ गए |
जमींदार ने दोनों के रुकने की अलग-अलग व्यवस्था की और स्वादिस्ट पकवान बनवाये | जमींदार पहले ज्ञानवान के पास गया और हालचाल जाना | जमींदार पहले तो ज्ञानवान से बहुत प्रभावित हुआ किन्तु अपने घमण्ड और बुद्धिमान को नीचा दिखाने के लिए ज्ञानवान जमींदार से बोला- " बुद्धिमान तो नाम का बुद्धिमान है इतने दिन वनारस में रहकर भी वह कुछ नही सीखा और अभी भी गधा ही है |"

घमण्डी विद्वान् की कहानी
ज्ञानवान की बाते जमींदार को अच्छी नहीं लगी | ज्ञानवान से मिलने के बाद वह बुद्धिमान से मिलने गया |बुद्धिमान में भी ज्ञानवान की तरह ही बातें की और कहा- " ज्ञानवान को कोई ज्ञान नहीं है और वह तो बैल है जिसे कुछ नहीं आता |"
जमींदार दोनों से बहुत निराश हुआ और कुछ देर पश्चात उसने ज्ञानवान और बुद्धिमान को भोजन के लिया बुलाया | दोनों भोजन के लिए आये और जब दोनों को थालियाँ परोसी गईं तो थाली में घास और भूंसा था | थालियाँ देखकर दोनों जमींदार पर बहुत क्रोधित होते हुए बोले - " आपने यहाँ हमें बेज्जत करने के लिए बुलाया है | क्या हम कोई जानवर है जो आप-हमें भूसा और घास खिला रहे हैं ?
जमींदार हाथ जोड़कर बोला- " मान्यवर ! आप विद्वान है और मेरे मेहमान है | मेरा उद्देश्य आपके बेज्जती करना नहीं है आप दोनों ही विद्वान होकर एक दूसरे को बैल और गधा बोल रहे थे इसीलिए बैल और गधे का जो भोजन पसंद है मैंने आपको भी वाही भोजन परोस दिया |"
जमींदार की बात सुनकर ज्ञानवान और बुद्धिमान को अपनी गलती का एहसास हुआ और दोनों ने एक दूसरे से क्षमा मांगी और जमींदार को धन्यवाद दिया | जमींदार ने भी दोनों को स्वादिस्ट पकवान खिलाये और दोनों की खूब आव-भगत किया |
शिक्षा- कोई कितना ही बड़ा विद्वान क्यूँ ना हो अगर दूसरे को नीचा दिखलानेका प्रयत्न करता है तो उसे भी नीचा देखना पड़ता है
विद्वान होने के सांथ ही उनमें इस बात का घमण्ड भी आ गया था कि वे बहुत विद्वान हैं | हर जगह दोनों ही अपने को अधिक श्रेष्ठ और दूसरे को नीचा दिखलाने कर प्रयत्न करते थे | दोनों को कई वार उनके शिक्षकों ने इस वारे में समझाया किन्तु दोनों अपने को ही श्रेष्ठ समझते थे |
शिक्षा खत्म होने के बाद दोनों को वनारस से अपने गाँव वापस लौटना था | रास्ता बहुत लंबा था चलते-चलते उन्हें रात हो गई और उन्होंने एक गाँव में अपना डेरा डाला | गाँव के जमींदार को पता चला कि उनके गाँव में वनारस के विद्वान आये हुए हैं | जमीदार साहब ने दोनों विद्वानों को रात्री विश्राम और भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित किया | ज्ञानवान और बुद्धिमान दोनों जमीदार के घर आ गए |
जमींदार ने दोनों के रुकने की अलग-अलग व्यवस्था की और स्वादिस्ट पकवान बनवाये | जमींदार पहले ज्ञानवान के पास गया और हालचाल जाना | जमींदार पहले तो ज्ञानवान से बहुत प्रभावित हुआ किन्तु अपने घमण्ड और बुद्धिमान को नीचा दिखाने के लिए ज्ञानवान जमींदार से बोला- " बुद्धिमान तो नाम का बुद्धिमान है इतने दिन वनारस में रहकर भी वह कुछ नही सीखा और अभी भी गधा ही है |"

घमण्डी विद्वान् की कहानी
ज्ञानवान की बाते जमींदार को अच्छी नहीं लगी | ज्ञानवान से मिलने के बाद वह बुद्धिमान से मिलने गया |बुद्धिमान में भी ज्ञानवान की तरह ही बातें की और कहा- " ज्ञानवान को कोई ज्ञान नहीं है और वह तो बैल है जिसे कुछ नहीं आता |"
जमींदार दोनों से बहुत निराश हुआ और कुछ देर पश्चात उसने ज्ञानवान और बुद्धिमान को भोजन के लिया बुलाया | दोनों भोजन के लिए आये और जब दोनों को थालियाँ परोसी गईं तो थाली में घास और भूंसा था | थालियाँ देखकर दोनों जमींदार पर बहुत क्रोधित होते हुए बोले - " आपने यहाँ हमें बेज्जत करने के लिए बुलाया है | क्या हम कोई जानवर है जो आप-हमें भूसा और घास खिला रहे हैं ?
जमींदार हाथ जोड़कर बोला- " मान्यवर ! आप विद्वान है और मेरे मेहमान है | मेरा उद्देश्य आपके बेज्जती करना नहीं है आप दोनों ही विद्वान होकर एक दूसरे को बैल और गधा बोल रहे थे इसीलिए बैल और गधे का जो भोजन पसंद है मैंने आपको भी वाही भोजन परोस दिया |"
जमींदार की बात सुनकर ज्ञानवान और बुद्धिमान को अपनी गलती का एहसास हुआ और दोनों ने एक दूसरे से क्षमा मांगी और जमींदार को धन्यवाद दिया | जमींदार ने भी दोनों को स्वादिस्ट पकवान खिलाये और दोनों की खूब आव-भगत किया |
शिक्षा- कोई कितना ही बड़ा विद्वान क्यूँ ना हो अगर दूसरे को नीचा दिखलानेका प्रयत्न करता है तो उसे भी नीचा देखना पड़ता है
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