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किसानों के साथ आया पूरा विपक्ष, बजट सत्र में मोदी सरकार की बढ़ीं मुश्किलें



नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ संसद के बजट सत्र की शुक्रवार को शुरुआत हो गई। किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कांग्रेस समेत 18 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया। केंद्र सरकार की ओर से पारित नए कृषि कानूनों के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता से साबित हो गया है कि बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर विपक्ष किसानों के साथ लामबंद हो चुका है। इससे साफ है कि पिछले दो महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसानों के आवाज की गूंज अब संसद में भी सुनाई देगी। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने साफ कर दिया है कि जब सरकार किसानों की भावनाओं का सम्मान करेगी तब हम इस सत्र में बहस में शामिल होंगे।

भाजपा ने बोला विपक्ष पर हमला
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बहिष्कार के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप के जबर्दस्त तीर चले। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे को लेकर विपक्ष पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में राष्ट्रपति का पद हमेशा से राजनीति से ऊपर रहा है और राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होता है। विपक्ष को इस बात का ख्याल रखना चाहिए।

भाजपा के निशाने पर मुख्य रूप से कांग्रेस
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के संबोधन का सम्मान करना लोकतंत्र का सम्मान है। मुख्य रूप से कांग्रेस को घेरते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस ने देश पर 50 साल से अधिक समय तक शासन किया है और उसे यह बात पता होनी चाहिए। कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के समय कई बड़े घोटालों के बावजूद भाजपा ने कभी राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार नहीं किया और कांग्रेस को इससे नसीहत लेनी चाहिए।

विपक्ष ने पहले ही कर दिया था एलान
राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने का एलान किया था। आजाद ने कहा कि तीनों नए कृषि कानूनों को विपक्ष के बिना सदन में जबर्दस्ती पास किया गया है और विपक्ष किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए प्रतिबद्ध है। किसानों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद भी इन कानूनों को अभी तक वापस नहीं लिया गया। उल्टे किसानों को दिल्ली उपद्रव में फंसाने की साजिश रची जा रही है।

कृषि कानूनों की वापसी पर अड़ी कांग्रेस
राष्ट्रपति के अभिभाषण का अपमान किए जाने के आरोपों पर जवाब देते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हम किसानों के समर्थन में खड़े हैं। हमारी सरकार से मांग है कि कृषि कानूनों को अविलंब वापस लिया जाए। सरकार किसानों की आवाज को जोर जबर्दस्ती से नहीं दबा सकती। जब किसानों की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा तभी हम इस सत्र में बहस में हिस्सा लेंगे।

किसानों को देशद्रोही करना स्वीकार नहीं
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना जरूरी है। किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए हमने राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध किया और किसानों के समर्थन में नारे लगाए।उन्होंने कहा कि हमें सेंट्रल हॉल के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई और इसी कारण हमने गेट पर नारे लगाकर किसानों की आवाज बुलंद की। किसानों को देशद्रोही कहा जा रहा है और इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसी कारण हमने राष्ट्रपति के संबोधन का बहिष्कार किया।

कांग्रेस को मिला इन दलों का साथ
किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध करने वाले दलों में कांग्रेस के अतिरिक्त सपा, राजद, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, माकपा, भाकपा, आरएसपी, पीडीपी, एमडीएमके, आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (एम) और एआईयूडीएफ शामिल है।

मोदी सरकार की बढ़ीं मुश्किलें
विपक्ष के इस रवये से साफ है कि बजट सत्र की शुरुआत के साथ ही विपक्ष ने किसानों के मुद्दे पर आर-पार की जंग लड़ने का मूड बना लिया है। किसान संगठनों की ओर से भी काफी दिनों से संसद का विशेष सत्र बुलाकर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की जाती रही है। ऐसे में जब संसद का सत्र शुरू हो चुका है तो विपक्ष निश्चित रूप से आने वाले दिनों में मोदी सरकार के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी करेगा। र्थव्यवस्था के चरमराती स्थिति, पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध, बढ़ती महंगाई और विभिन्न अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार की मनमानी के खिलाफ घेराबंदी की रणनीति तैयार की है। सियासी जानकारों के मुताबिक विपक्षी दलों के रवये से साफ है कि बजट सत्र के दौरान सरकार को विपक्ष के जोरदार हमलों का सामना करना पड़ेगा।

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