
धार्मिक देश के नाम से पहचाने जाने वाले भारत में हर धर्म के अनुसार अपने अलग-अलग रीति-रिवाज बनाये गये हैं, लेकिन चाहें मंदिर हो, मस्जिद हो या फिर गुरुद्वारा हो इन सभी धार्मिक स्थानों पर प्रसाद चढ़ाने का रिवाज एक ही है. हर धार्मिक स्थान पर भगवान को मिठाई, फल, दूध अन्य के रूप में प्रसाद जरूर चढ़ाया जाता है. ऐसे बहुत कम ही लोग होंगे जो मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की रिवाज जानते होंगे, बताया जाता है कि इस परंंपरा के पीछे भी एक मान्यता मानी जाती है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि शास्त्रों के अनुसार तीन तरह के भोजन सात्विक, राजसिक और तामसिक में से भगवान को सात्विक भोजन ही क्यों प्रसाद के रूप में चढ़ाने को कहा गया है.
ये है भगवान को प्रसाद चढ़ाने की मान्यता
भगवान को चढ़ाया जाता है सात्विक भोजन
राजसिक भोजन में लहसुन, प्याज, चाय, कॉफी जैसे खाद्य व पेय पदार्थ आते हैं, तो वहीं तामसिक भोजन में मांस, अंडा, मच्छी जैसे खाद्य पदार्थ आते हैं, इसलिए भगवान को राजसिक और तामसिक भोजन को चढ़ाने से मना करके सात्विक भोजन चढ़ाने के लिए कहा गया है. मंदिरों में चढ़ाये जाने वाले प्रसाद को खाने वाला व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है. जो लोग भगवान को सात्विक प्रसाद चढ़ाते हैं उस व्यक्ति पर भगवान की कृपा बनी रहती है, वहीं जो लोग सात्विक भोजन से दूर रहते हैं, तो वो मंदिरों में इस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
प्रसाद चढ़ाने से व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा रहता है

इसलिए भगवान को चढ़ाये हुए प्रसाद को लेने से कोई व्यक्ति मना नहीं करती है
भगवान को चढ़ाये गये प्रसाद को लेने से कोई व्यक्ति मना नहीं करता है, प्रसाद का सम्मान करते हुए उसे दोनों हाथ फैलाकर लिया जाता है, वहीं प्रसाद चढ़ाने के पीछे एक और मान्यता है, कि जब भगवान की आरती हो जाती है तो उन्हें आत्मसात के लिए प्रसाद चढ़ाया जाता है. ऐसा करने से पूजा-पाठ ना करने वाला व्यक्ति भी ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है.
प्रसाद को हमेशा दाहिने हाथ से लेना चाहिए

वहीं ठीक ढंग से प्रसाद चढ़ाने से ही ईश्वर की कृपा बरसती है, भगवान को प्रसाद चढ़ाते वक्त और खुद प्रसाद ग्रहण करते वक्त दाहिने हाथ का इस्तेमाल करना चाहिए. दूसरी बात. अगर आप किसी से प्रसाद ले रहे हैं तो हमेशा सिर झुकाकर लेना चाहिए इससे शरीर में सात्विकता बढ़ती है.
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